हर किसीके दिल में एक घर*
*बनाना सीखो ।।*
*।।विधा ।। मुक्तक।।*
1
हर दिल में तुम इक घर
बनाना सीखो।
किसी के दर्द के लिए दवा
बन जाना सीखो।।
तेज आवाज नहीं ऊंची
बात कहो तुम।
वक्त रहते ही सही गलत
आजमाना सीखो।।
2
आँखों और दिल की जुबां
पढ़ना सीखो।
बिना सीढ़ी के तुम ऊपर
चढ़ना सीखो।।
तुम्हारी किस्मत बनती है
प्रारब्ध और कर्म से।
अपना भाग्य तुम खुद ही
गढ़ना सीखो।।
3
धारा के विपरीत भी तुम
चलना सीखो।
संघर्ष अग्नि में तुम तपना
गलना सीखो।।
तेरे अंदर की क्षमता निकल
कर आये बाहर।
हो लाख रुकावटें तुम आगे
बढ़ना सीखो।।
4
विनम्र विनोदी सहयोगी तुम
बनना सीखो।
हर काम जीवन में धैर्य से
करना सीखो।।
याद रखो छवि की उम्र व्यक्ति
से होती है ज्यादा।
कोई बदनामी तो पहले तुम
मरना सीखो।।
*रचयिता।।एस के कपूर "श्री हंस*"
*।।तेरे विचारों से ही तेरे जीवन का*
*निर्माण होता है।।*
*।।विधा।।मुक्तक ।।*
1
तेरे विचार ही चलकर फिर
तेरे शब्द वर्ण बनेंगें।
तेरे शब्द फिर आगे सिद्ध
तेरे कर्म करेंगें।।
तेरे कर्म ही निर्माण करेंगें
व्यक्तित्वऔर चरित्र।
निर्धारण होगा कैसे तेरे
जीवन मर्म चलेंगें।।
2
मिट्टी से बना इक खिलौना
है हमारा शरीर यह।
टूट जाता सबका कोई भी
राजा फ़क़ीर यह।।
मिट जाती हस्ती सबकी बस
करनी याद रहती है।
विधाता की लिखी हुई कोई
पत्थर की लकीर यह।।
3
आदमी की हर बात का
बस इत्मीनान हो।
इंसानियत ही बस आदमी
का ईमान हो।।
नहीं चाहिए खुदा सी सीरत
हूमें आदमी में।
बस बने आदमी आज एक
अच्छा इंसान हो।।
4
जीत तो हमेशा विवेकी और
समझदार की होती है।
दोस्ती पक्की भी बस एक
वफादार की होती है।।
हो तेरी कोशिश सूरत नहीं
सीरत को चमकाने की।
क्योंकि कद्र हमेशा आदमी के
किरदार की होती है।।
*रचयिता।।एस के कपूर श्री हंस
बहुत सुंदर प्रस्तुति। आपकी रचनाएं हमेशा ही उत्कृष्ट होती हैं।सन्देश परक रचना के लिए हार्दिक बधाई।🙏🙏🙏
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