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मधु शंखधर स्वतंत्र

*मधुमालती छंद*
*गीता*
_______________

गीता महा गाथा कहे ।
श्री कृष्ण की वाणी रहे ।
सच ज्ञान का दीपक जले ।
शुभ भावना मन में पले ।।

अर्जुन कभी भी हार मत।
अपने खड़े स्वीकार गत ।।
जीवन मरण तो चक्र  है ।
यह सत्य कारी वक्र है ।।

कर्मों  निहित ही फल मिले ।
कोमल नये पत्ते खिले।
जो मिल गया वो प्यार है ।
जानों वही अधिकार है ।।

अर्जुन व कृष्णा साथ थे।
अब सारथी खुद नाथ थे ।
सुनकर वचन अर्जुन कहे।
क्यू् दर्द ऐसा हम  सहें ।।

गीता सतत् संदेश दे ।
चेतन जगत आदेश दे ।
स्वीकार लो सब जान लो।
सच्ची सफलता मान लो ।।

गीता रचे खुद व्यास जी।
पढ़ते नवल इतिहास जी ।
जीवन सुधा रस पी रहे ।
मधु मालती लिख जी रहे।।
*मधु शंखधर ' स्वतंत्र*
*प्रयागराज*
*14/01/2022*

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