*मधुमालती छंद*
*गीता*
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गीता महा गाथा कहे ।
श्री कृष्ण की वाणी रहे ।
सच ज्ञान का दीपक जले ।
शुभ भावना मन में पले ।।
अर्जुन कभी भी हार मत।
अपने खड़े स्वीकार गत ।।
जीवन मरण तो चक्र है ।
यह सत्य कारी वक्र है ।।
कर्मों निहित ही फल मिले ।
कोमल नये पत्ते खिले।
जो मिल गया वो प्यार है ।
जानों वही अधिकार है ।।
अर्जुन व कृष्णा साथ थे।
अब सारथी खुद नाथ थे ।
सुनकर वचन अर्जुन कहे।
क्यू् दर्द ऐसा हम सहें ।।
गीता सतत् संदेश दे ।
चेतन जगत आदेश दे ।
स्वीकार लो सब जान लो।
सच्ची सफलता मान लो ।।
गीता रचे खुद व्यास जी।
पढ़ते नवल इतिहास जी ।
जीवन सुधा रस पी रहे ।
मधु मालती लिख जी रहे।।
*मधु शंखधर ' स्वतंत्र*
*प्रयागराज*
*14/01/2022*
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