प्रेमा के प्रेमिल सृजन __
10/01/2022-
विधा-दोहा
*सृजन शब्द-सुहागन*
बनी सुहागन आप की, जीना है अब साथ ।
माधव से अरदास है, नहीं छोड़ना हाथ ।।1!!
कहे सुहागन माँग में, भरदे अब तो प्यार ।
जीवन भर दें प्रेम में, करे प्रीत इकरार ।।2!!
हाथों में हो मेंहदी , लगे महावर पाँव ।
प्रेम गली में वास हो , प्रियतम का सुख छाँव ।।3!!
साँसों के स्पंदन सदा, बसता तू ही आज ।
नव तरंग उठती सदा, कहे मिलो सरताज ।।4!!
मन गहराई जान ले, कुछ तो करो उपाय ।
मन मति होती बावरी , और अधिक अकुलाय ।।5!!
दर्शन प्यासे नैन है, कर देना उपकार ।
देखूँ तुझको हर पहर, कहे सुहागन सार ।।6!!
बनी सुहागन देखती, राह निहारूँ आज ।
व्रत रखती तेरे लिए, तू सजता हिय ताज ।।7!!
कहे सुहागन सुन विनय ,माधव तुम हो खास ।
प्रेमा प्रीतम मानती, तुझसे ही है आस ।।8!!
खड़ी सुहागन वीर की, राह देखती रोज ।
देश भक्ति के फर्ज में, जीती जीवन ओज ।।9!!
बनी सुहागन वीर की, सैनिक था जो एक ।
माँग भरी है खून से, सुखी रहे प्रत्येक ।।10!!
-----योगिता चौरसिया "प्रेमा"
-----मंडला म.प्र.
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