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चंद्रप्रकाश गुप्त चंद्र

शीर्षक -   गुरु गोविंद सिंह जयंती

(प्रकाश पर्व, गुरु गोविंद सिंह जयंती पर समस्त देशवासियों को हार्दिक शुभकामनाएं)

पराक्रमी पिता तेग बहादुर, माता गुजरी का था जो जाया

पावन पुण्य धरा पटना की धन्य हुई, जन्म जहां पर पाया

जिसने जीवन भर ध्वज, धर्म का अविचल अडिग फहराया

जिसे पाखंड अधर्म अत्याचार पर, झुकना कभी न आया

महान् वह संत योद्धा, सदैव रहा गृहस्थ अविकार

सत्य धर्म के लिए आजीवन, लड़ता रहा विविध प्रकार

अनुपम भेष कराया धारण,कंघा केश कच्छा कंगन और कटार

खालसा हेतु छकाया अमृत, और धारण कराए विशेष ककार

अद्भुत बलिदानी जो हिन्दू धर्म की रक्षा हित, तीन पीढियां बार गये

बुझेगी नहीं ज्योति धरा पर उनकी, जिंदादिली हमको सिखा गये

धर्म रक्षा हित करने बलिदानी सदा तैयार, पंथ खालसा का सृजन कर गये

चौदह युद्धों में मुगलों को कर परास्त, अपने पुत्रों का हॅ॑सते हॅ॑सते बलिदान दे गये

जिन्होंने चिड़ियों से बाज़ तुडाये, गीदड़ भी दहाड़ते सिंह बनाये

सवा लाख से एक लड़ा कर, गोविंद सिंह अमर नाम कहलाये

जिनके बाणों की बौछारों से, शत्रु विटप से गिरने ढूंढते मही अगवानी थे

ऐसे गुरु गोविंद सिंह जी श्रेष्ठ पुत्र, पिता महा शौर्यवान बलिदानी थे

युद्धों में भी जो धैर्य न्याय सत्य न खोते, ऐसे अद्भुत सेनानी थे

धर्म न्याय की रक्षा में सर्वस्व लुटनेवाले, देशभक्ति की अलौकिक निशानी थे

   जय गुरु गोविंद सिंह जी
         जय खालसा          

           वन्दे मातरम्

     चंद्रप्रकाश गुप्त "चंद्र"
(ओज कवि एवं राष्ट्रवादी चिंतक)
         अहमदाबाद, गुजरात
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        सर्वाधिकार सुरक्षित
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