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एस के कपूर श्री हंस

*।।मिल  जुल कर जीने का*
*अंदाज़ ही जिन्दगानी है।।*
*।।विधा।। मुक्तक।।*
1
मैं अपनी ही जिन्दगी को फना
होते  देखता.  रहा।
जिंदगी की राह में कोहरा घना
होते   देखता   रहा।।
समय से      कोशिश नहीं  की
जीवन  जीने     की।
खुद को इक पुतला    सा  बना
होते देखता रहा।।
2
मैंने जाना नहीं कि  जिंदगी  तो
इक   इबादत    है।
खुशियां   ढूंढ क़र    लाने    की
इक     तिजारत है।।
हज़ारों रंग समेटे    है   जिन्दगी
छोटी सी     उम्र में।
हौंसला धैर्य विवेक  से जीत की
इक   इबारत      है।।
3
जिन्दगी तो   एक   अनमोल सी
अनसुनी   कहानी है।
कभी बहुत बुद्धिमानी   तो कभी
इसमें    नादानी    है।।
जिन्दगी का फलसफा कि    बस
जी कर देखो इसे जरा।
सदा बहती रवानी  ही   कहलाती
जिन्दगानी            है।।
*रचयिता।।एस के कपूर "श्री हंस"*
*बरेली।।*

*।।भावना  और प्रेम ही*
*रिश्तों को   निभाने का*,
*एक    मात्र     मन्त्र है।।*
*।।विधा।।   मुक्तक।।*
1
जल रहे भून रहे   हैं नफ़रत
की    आग    में।
खुद ही चुन  रहे  हैं     कांटें
अपने   भाग  में।।
बोल रहे हैं   दिन   रात  राग
विद्वेष  की भाषा।
घुन लग रहे  हैं   भीतर  तक
दिल के सुराख में।।
2
रिश्ते भी हो रहे   फना  घृणा
की       आग     में।
भेंट चढ़ रहे  संबंध      अहम
की     खुराक    में।।
घमंड होता बहुत भूखा    खा
जाता हर दोस्ती को।
मिल रहे    बरसों   के     नाते
मिट्टी और  खाक में।।
3
अच्छे संबंधों के भीतर  स्वार्थ
नहीं    होना   चाहिये।
दिल के रिश्तों को झूठे   स्वांग
में नहीं खोना चाहिये।।
रिश्ते नाते   तो  इक   नियामत  
बचा कर   रखो  इन्हें।
तब   फिर   पछतावे की   राख
में नहीं   रोना चाहिये।।
4
कम बोलो   काम     का  बोलो 
यह एक सिद्ध  यंत्र है।
बड़े ध्यान से सुनो बात  सबकी
रिश्तों का अचूक तंत्र है।।
गुण अवगुण नहीं  भाव     और
प्रेम से  नींव रिश्तों की।
दिल से निकली    भावना ही तो
रिश्ते निभाने का मंत्र है।।
*रचयिता।।
एस के कपूर "श्री हंस*"
*बरेली।।

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