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चंद्रप्रकाश गुप्त चंद्र

*शीर्षक* -   *हिंदी भाषा*

(विश्व हिंदी दिवस पर विश्व में रह रहे सभी हिंदी प्रेमियों को हार्दिक शुभकामनाएं)

महाकाल के वाद्य से प्रकटी संस्कृत की बेटी, कालजयी भाषा है हिंदी

अक्षर वृह्म शब्द सिंधु है ,जीवन की परिकल्पित परिभाषा है हिंदी

साॅ॑सें है भारत की, भारत के भविष्य की प्रबल अभिलाषा है हिंदी

जो संपूर्ण देश को जोड़े,ऐसी जन जन की भाषा है हिंदी

हमारी लेखनी हमारी वाणी हमारा सृजन, व्याकरण है हिंदी

हमारा संस्कार हमारी संस्कृति , हमारा आचरण है हिंदी

हिंदी हमारी अस्मिता हमारा अभिमान और हमारा सम्मान है हिंदी

सूर तुलसी कवियों ऋषि मुनियों का, ज्ञान और गान है हिंदी

जैसे जड़ से कट कर वृक्ष, कभी नहीं हरे भरे रह पाते हैं

कृतघ्न और अमानुष माॅ॑ का सम्मान, कभी नहीं कर पाते हैं

माॅ॑ की ममता पोषण से ही, शिशु बड़े और महान् हो पाते हैं

वो पशुओं से जीते हैं जो प्यार लुटाते औरों पर,माॅ॑ का गुणगान नहीं कर पाते हैं

सभी सरितायें मिलती जैसे सागर में, हिंदी वह अथाह सागर है

हिंदी शब्द नाद लिपि और विश्वासों का अनुपम अद्भुत आगर है

फिर भी आज द्रोपदी बनी खड़ी है है हिंदी, अंग्रेजी खींच रही है चीर

अंधे राजा बहरी सरकारें गूंगी जनता है, हिंदी झेल रही निरंतर पीर

नष्ट हो रही देश की गौरव गरिमा, अंग्रेजी स्कूल बन रहे हैं कौरव अधीर

सजल अभागी हिंदी रो रही,भर भर नयनों नीर किसे सुनाए अपनी पीर

हिंदी वीरों की तलवार बने कवियों की पूजा से, करे कलम श्रंगार

भारत माता का ऊंचा भाल हो, गंगा सी हिंदी की बहे अविरल पावन धारा

हिंदी के उत्थान हित आओ हम सब बनें भगीरथ, करें स्वयं का और राष्ट्र उद्धार

अंगरेजी मानसिक दासता से मुक्ति पायें, खोलें वैभव गौरव के स्वर्णिम द्वार

महाकाल के वाद्य से प्रकटी संस्कृत की बेटी, कालजयी भाषा है हिंदी..... 

अक्षर व्रह्म शब्द सिंधु है, जीवन की परिकल्पित, परिभाषा है हिंदी......

               जय हिंदी जय हिंद

     चंद्रप्रकाश गुप्त"चंद्र"
 ओज कवि एवं राष्ट्रवादी चिंतक
       अहमदाबाद, गुजरात
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             सर्वाधिकार सुरक्षित
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