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डॉ.अमित कुमार दवे

©भाल यशस्वी उन्नत करती मधुरं सरगम वाली अपनी हिंदी
राष्ट्र की आत्मा अन्तस् में रखती जगत् साधती अपनी हिंदी।।
©डॉ. अमित कुमार दवे,खड़गदा
      
हिंदुस्थान की गौरव गाथा का नित सम्मान करती अपनी हिंदी
भाल यशस्वी उन्नत करती मधुरं सरगम वाली अपनी हिंदी।।

सहस्रों मिलों की दूरी सहज संवाद से ही पाटती अपनी हिंदी
ज्ञान सनातन जग को सिखलाती नित विकसती अपनी हिंदी।।

अन्तर्कलह को स्वयं पाटती एकसूत्र में देश पिरोती अपनी हिंदी
नेह-स्वावलंबन का नित मर्म जन को बतलाती अपनी हिंदी।।

शब्ददृष्टि से वर्त्तमान निहार ज्ञान भंडारण करती अपनी हिंदी
भावी पीढ़ी को संस्कारित करने का सामर्थ्य रखती अपनी हिंदी।।

मार्ग शान्ति का सरल सहज़ ही नित जग को सिखलाती
अपने ही आनंद में विश्व जन को मुग्ध करती अपनी हिंदी।। 

नवीन ज्ञान-विज्ञान क्रोढ़ में सहेज समृद्ध स्वतः होती हिंदी
आश्रय वैश्विक ज्ञान का बनती हमारी प्यारी अपनी हिंदी।।

नित विकसती जनमानस हर्षाती विकसित होती अपनी हिंदी
राष्ट्र की आत्मा अन्तस् में रखती जगत् साधती अपनी हिंदी।।

सादर सस्ने प्रस्तुति
©डॉ.अमित कुमार दवे, खड़गदा,

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