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डॉ0 हरि नाथ मिश्र


गीत
तुम बिन साजन दिवस नुकीले,
सुई-चुभन सी रातें हैं।
मधुर बोल कोई भी बोले,
खट्टी लगतीं बातें हैं।।

नहीं बहारें अच्छी लगतीं,
बिन सुगंध के पुष्प लगें।
बूँदें जल की जलें अनल सम,
रूखी-सूखी शष्प लगें।
कोमल छुवन वज्र सम लागे,
कोयल-गीत न भाते हैं।
    सुई-चुभन सी रातें हैं।।

दुनिया लगती उजड़ी-उजड़ी,
गुलशन भी वीरान लगें।
हरियाली से वंचित मुझको,
सावन की सीवान लगें।
उल्टी-पुलटी अब तो लगतीं,
कुदरत की सौगातें हैं।।
     सुई-चुभन सी रातें हैं।।

जब-जब बहे पवन पुरवाई,
तेरी याद सताती है।
लाख यत्न सोने का करती,
नींद नहीं तब आती है।
बरसें भले गगन से बादल,
तृष्णा नहीं बुझाते हैं।।
     सुई-चुभन सी रातें हैं।।

दिवस-महीने-वर्षों गुजरे,
अब तो साजन आ जाओ।
बाट जोहती द्वार खड़ी मैं,
आकर प्यार जता जाओ।
प्यार भाग्य से मिलता जग में,
योगी-संत बताते हैं।।
     सुई-चुभन सी रातें हैं।।
              ©डॉ0हरि नाथ मिश्र
                  991944637

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