दोहे(दया)
दया-धर्म वंचित मनुज,होता हृदय विहीन।
हैं महान वे जगत में,जिनके प्रिय हैं दीन।।
दया-भाव देवत्व है,अति पवित्र यह भाव।
दयावान का तो रहे,सबसे सघन लगाव।।
पत्थर-दिल इंसान तो,हो अधर्म-आधार।
ऐसे जन का जगत में,करें नहीं सत्कार।।
मानवता का मूल है,दया-क्षमा अरु दान।
मात्र एक ही से जगत,होता पुरुष महान।।
दयालुता है श्रेष्ठ जग,कहते वेद-पुराण।
मात्र दया का भाव ही,करता जग-कल्याण।।
©डॉ0हरि नाथ मिश्र
9919447372
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