पी की महक
छूकर आई हवा पी तन को
मन महका तन बहक गया
खुले पेंच अलकों के सारे
देने लगा सदाआँचल पवन को
दूर बसे परदेस पिया जी
भेज हवाओं पर प्रेम संदेश दिया/गुनकर चंचल नयन
हुए रतनारे /रख न सके भेद जिया में
भोर से सांझ तलक हुआ
सारा आलम सिंदुरी-सिंदुरी
प्रीत के रंग में भीगा फागन
तन बूढ़ा, मन उबर गया
जित देखूं पी आए नजर
अनबोले गीतों में छम-छम
थिरकने लगे अनजाने में पग
नाच रही जैसे कोई बावरी
होकर मस्त मलंग।
डा.नीलम
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