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विजय कल्याणी तिवारी

// भरमाना छोड़ //
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अब मन को भरमाना छोड़
आँसू अधिक बहाना छोड़।

कहाँ भटकता भ्रमित भाव ले
सुख का यहाँ खजाना छोड़।

सीधी सच्ची बात किया कर
मारा मत कर,ताना छोड़ ।

क्यों बदले मन भाव तुम्हारे
कैसा चलन,जमाना छोड़ ।

देख तुम्हारे हिस्से क्या है
उनका हिस्सा खाना छोड़ ।

रीत नीत का ध्यान रखा कर
करना अब मनमाना छोड़ ।

खुद समझे तो बड़ी बात है
अन्यों को , समझाना छोड. ।

मर्यादाएं टूट रही हैं
अब तो नग्न नहाना छोड़।

वह निरीह कोने में बैठा
उसको व्यर्थ सताना छोड़।

विजय कल्याणी तिवारी
बिलासपुर छ.ग.

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