न्याय प्रणाली
गली-गली में न्याय विकत है।
हर क्षण मानवता सिसकत है।।
कोई नहीं बचानेवाला।
अच्छी राह बनानेवाला।
सभी जगह पर यही शोर है।
अन्यायी का बहुत जोर है।।
बाहुबली का आज जमाना।
गलत काम से खूब कमाना।।
न्याय नहीं है न्यायालय में।
सिद्ध नहीं हैं देवालय में।।
नहीं सरस्वति विद्यालय में।
नहीं स्वच्छता उर-आलय में।।
पारदर्शिता लुप्त हो चुकी।
मर्यादा अब सुप्त हो चुकी।।
कोसों दूर खड़ी नैतिकता।
अन्यायी दिखती भौतिकता।।
जग के मन में पाप भरा है।
अन्यायी का हृदय हरा है।।
न्याय चाटता धूल सड़क पर।
बोल रहा अन्याय कड़क कर।।
रचनाकार:डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी
9838453801
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