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चंद्रप्रकाश गुप्त चंद्र

शीर्षक-     होली
(समस्त देशवासियों को होली दहन की हार्दिक शुभकामनाएं)

होली में हिरण्यकश्यप से कर्म जलायें,कथा प्रहलाद की घर घर पहुंचायें

होली में होलिकाओं के भी मंसूबे खाक करें,निष्ठा विश्वास का संदेश जन-जन तक पहुंचाएं

होली में द्वेष, ईर्ष्या-कुंठा,कलुष जलायें,धरती पर नया उजाला लायें

हम भारत के गुण गायें, मानवता के ज्ञान प्रकाश की ज्योति अखंड जलायें

ले कर मशाल देशभक्ति की, देशहित मर मिटने की अलख जगायें

जाति धर्म वंश का भेद मिटायें, भारत माता की सेवा में जुट जायें

चिर प्रेम, त्याग, सृजन, कर्म, बुद्धि, विवेक, सत्य के, इंद्र धनुष अभिराम बनायें

अवनि से अंबर तक देशप्रेम का, अद्भुत गुलाल अबीर उडायें

आत्मबल, अनुशासन,संयम से आत्मनिर्भरता की गुजियां खूब बनायें

व्यक्ति, परिवार , समाज, राष्ट्र को ऊर्जा, स्फूर्ति की ठंडाई खूब पिलायें

जन्म जहां पर हमने पाया, अन्न जहां का हमने खाया,बलि बलि उस पर जायें

ज्ञान जहां से हमने सीखा, वस्त्र जहां के हमने पहने, सेवा में उसकी सर्वस्व लुटायें

होली के पावन पर्व पर तन मन धो कर भारत को प्रकाश पुंज से भर दें

रंगों की उमंग भर,मानव मात्र का सम्मान कर, देवत्व के दिव्य प्रकाश से जग को जगमग कर दें

होली में हिरण्यकश्यप के कर्म जलायें,कथा प्रहलाद की घर-घर पहुंचायें

होली में होलिकाओं के भी मंसूबे खाक करें, निष्ठा विश्वास का संदेश जन-जन तक पहुंचाएं

         चंद्रप्रकाश गुप्त "चंद्र"
     (ओज कवि एवं राष्ट्रवादी चिंतक)
           अहमदाबाद गुजरात    
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          सर्वाधिकार सुरक्षित
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