*हे ! प्रिय फागुन आया*
हे! प्रियवर फागुन आया
उरपुर तिमिर फिर क्यों छाया,
उठी मर्म पीर झंझानिल बनकर
यह अंतर्नभ क्यों अकुलाया
हे ! प्रियवर फागुन आया।
उस कल्पित कुंज मे विचरण कर
फिर प्रबल उत्कंठा जाग उठी,
तरल तरगें व्योम प्रवाही
रोम - रोम में भाग उठी,
उत्कंठा ने अवसाद मिटाया
हे ! प्रियवर फागुन आया।
सराबोर सभी रंग में सांवरिया
क्यों ना मोरी रंगों चुनरिया ?
तन भीगा मन प्यासा सा है
अविरल धार निराशा सा है ,
एकाकी मन की वीणा ने
फिर सुर कोई नया सजाया,
हे ! प्रियवर फागुन आया।
विरह वेदना को बिसरा कर
प्रणय प्रीत रसधार बहा दूं
प्रतिबिंबित हो जाओ प्रियतम,
आज नेह का रंग लगा दूं
तुम तो रूप धरो श्यामल सा,
और मैं राधा सी बन जाऊं
ये देख समा फिर मन हर्षाया
हे ! प्रियवर फागुन आया।
स्वरचित कविता *मंजु तॅंवर*
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