सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

मंजु तॅंवर

*हे ! प्रिय फागुन आया*
   
  हे!  प्रियवर  फागुन आया
 उरपुर तिमिर फिर क्यों छाया,
 उठी मर्म पीर झंझानिल बनकर
  यह  अंतर्नभ क्यों अकुलाया
  हे !  प्रियवर फागुन  आया। 

उस कल्पित कुंज मे विचरण‌ कर
फिर  प्रबल  उत्कंठा  जाग  उठी,
   तरल  तरगें  व्योम  प्रवाही
   रोम - रोम  में  भाग  उठी,
  उत्कंठा ने अवसाद मिटाया
  हे ! प्रियवर  फागुन  आया। 

 सराबोर सभी रंग में सांवरिया
  क्यों ना मोरी रंगों चुनरिया  ?
  तन  भीगा  मन प्यासा सा है
 अविरल  धार  निराशा  सा है ,
  एकाकी   मन  की  वीणा  ने
  फिर सुर कोई नया सजाया,
  हे  ! प्रियवर  फागुन आया। 

   विरह वेदना को बिसरा कर
   प्रणय प्रीत रसधार बहा दूं
 प्रतिबिंबित हो जाओ प्रियतम,
  आज   नेह  का  रंग  लगा  दूं
  तुम तो रूप धरो श्यामल सा,
  और मैं  राधा  सी बन जाऊं
  ये देख समा फिर मन हर्षाया
   हे !  प्रियवर  फागुन  आया। 

स्वरचित कविता     *मंजु तॅंवर*
✒️✒️✒️✒️✒️🙏🏻🙏🏻💐

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

राष्ट्रीय आंचलिक साहित्य संस्थान हरियाणा द्वारा आयोजित सम्मान समारोह में "हरिवंश राय बच्चन सम्मान- 2020" से शिक्षक दयानन्द त्रिपाठी (कवि दयानन्द त्रिपाठी व्याकुल ) को मिलि उत्कृष्ट सम्मान

राष्ट्रीय आंचलिक साहित्य संस्थान हरियाणा द्वारा आयोजित सम्मान समारोह में "हरिवंश राय बच्चन सम्मान- 2020" से शिक्षक दयानन्द त्रिपाठी (कवि दयानन्द त्रिपाठी व्याकुल ) को मिलि उत्कृष्ट सम्मान राष्ट्रीय आंचलिक साहित्य संस्थान हरियाणा द्वारा आयोजित सम्मान समारोह में "हरिवंश राय बच्चन सम्मान- 2020" से शिक्षक दयानन्द त्रिपाठी (कवि दयानन्द त्रिपाठी व्याकुल ) को उत्कृष्ट कविता लेखन एवं आनलाइन वीडियो के माध्यम से कविता वाचन करने पर राष्ट्रीय मंच द्वारा सम्मानित किया गया। यह मेरे लिए गौरव का विषय है।

डा. नीलम

*गुलाब* देकर गुल- ए -गुलाब आलि अलि छल कर गया, करके रसपान गुलाबी पंखुरियों का, धड़कनें चुरा गया। पूछता है जमाना आलि नजरों को क्यों छुपा लिया कैसे कहूँ , कि अलि पलकों में बसकर, आँखों का करार चुरा ले गया। होती चाँद रातें नींद बेशुमार थी, रखकर ख्वाब नशीला, आँखों में निगाहों का नशा ले गया, आलि अली नींदों को करवटों की सजा दे गया। देकर गुल-ए-गुलाब......       डा. नीलम

रमाकांत त्रिपाठी रमन

जय माँ भारती 🙏जय साहित्य के सारथी 👏👏 💐तुम सारथी मेरे बनो 💐 सूर्य ! तेरे आगमन की ,सूचना तो है। हार जाएगा तिमिर ,सम्भावना तो है। रण भूमि सा जीवन हुआ है और घायल मन, चक्र व्यूह किसने रचाया,जानना तो है। सैन्य बल के साथ सारे शत्रु आकर मिल रहे हैं, शौर्य साहस साथ मेरे, जीतना तो है। बैरियों के दूत आकर ,भेद मन का ले रहे हैं, कोई हृदय छूने न पाए, रोकना तो है। हैं चपल घोड़े सजग मेरे मनोरथ के रमन, तुम सारथी मेरे बनो,कामना तो है। रमाकांत त्रिपाठी रमन कानपुर उत्तर प्रदेश मो.9450346879