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विजय कल्याणी तिवारी

// दुखी हुआ क्यों //
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दुखी हुआ क्यों खोने में
उमर गंवाया सोने मे ।

बात हाथ से निकल गई
क्या रख्खा है रोने में ।

मुझको तू आनंदित दिखता
पाप की गठरी ढोने में ।

तेरा मन कातर नही होता
देख पड़ा है कोने में ।

फूलों से बढ गयी वितृष्णा
खुश है कांटे बोने में ।

खुद के लिए थाल चांदी के
उसका भोजन दोने में ।

क्षणिक विलंब नही लगता है
तन को माटी होने में ।

दुख पीड़ा सब सहज मिटेंगे
मन रख श्याम सलोने में ।

विजय कल्याणी तिवारी
बिलासपुर छ.ग.

//अवसाद भरा//
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अंतर हिय अवसाद भरा
मन मष्तिष्क प्रमाद भरा है ।

क्या लेना था क्या लेता है
प्रकृति , प्रभु प्रसाद भरा है ।

तीखा कड़ुआ नही कहीं कुछ
कण कण अनुपम स्वाद भरा है।

क्यों अनबोला निपट अकेला
शामिल हो संवाद भरा है ।

कैसे मैं भूलूं कह उनको
अंतस ढेरों याद भरा है ।

सीधी सादी सोच नही तो
केवल कलह फसाद भरा है।

सुन सकता है ध्यान लगाकर
इस जग मोहक नाद भरा है।

विजय कल्याणी तिवारी
बिलासपुर छ.ग.

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