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मार्कण्डेय त्रिपाठी

हिन्दू नववर्षाभिनन्दन

नव वर्ष का प्रारंभ है, प्रकृति हमारे संग है ।
हिन्दू हृदय अति मगन है, आनंद ही आनंद है ।।

षट् उत्सवों में प्रमुख यह , संस्कृति की यह पहचान है ।
ब्रह्मा ने सृष्टि थी रची, इस पर्व का अति मान है ।
उल्लसित है हर हृदय, मुखरित आज कवि का छंद है ।।
हिन्दू हृदय अति मगन है

निकली हैं स्वागत यात्राएं, है निराली यह छटा ।
सजधजकर सब शामिल हुए,हर भेद बंधन है कटा ।
हम एक हैं, इस भाव से,बिखरा हुआ मकरंद है ।।
हिन्दू हृदय अति मगन है

अद्भुत है गुडी पाड़़वा का पर्व यह कहते सभी ।
भगवामयी शुचि सोच ऐसी, हम नहीं देखे कभी ।
जाग्रत हुआ हिन्दू हृदय, झांकी का अनुपम रंग है ।।
हिन्दू हृदय अति मगन है

आबाल वृद्ध , तरुण सभी, गाते सुरीले गीत हैं ।
है वाद्य यंत्रों की मधुरता,हर हृदय की जीत है ।
भाषण ओजस्वी हो रहे, सबसे सफल सम्बन्ध है ।।
हिन्दू हृदय अति मगन है

शोभित हैं स्वयं सेवक हमारे, पूर्ण शुचि गणवेश में ।
पद संचलन वे कर रहे, कटिबद्ध गुरु आदेश में ।
बंटती मिठाई आज है, पुष्पित हृदय बहुरंग है ।।
हिन्दू हृदय अति मगन है

जयकार भारत मां का है, राष्ट्र नायकों का गान है ।
यह राष्ट्रवादी सोच है, जो हर हृदय की शान है ।
पांच हजार एक सौ चौबीस युगाब्द,का यह दिवसारंभ है ।।
हिन्दू हृदय अति मगन है, आनंद ही आनंद है ।।

मार्कण्डेय त्रिपाठी

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