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विजय कल्याणी तिवारी

// अहम से //
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आच्छादित जो भरम से
हारता वह निज वहम से।

जीत पाएगा कभी क्या
बोल तो अंतस अहम से ।

दूर जाने सब लगे अब
मीत जीवन के धरम से ।

बात कोई क्यों बने प्रिय
जब अलग होता है श्रम से।

एक से दुनिया में आते
सुखदुख नही आता जनम से।

फेर कर मुंह चल दिए क्यों
आस टूटी आज हमसे ?

वह पिघल कर रह गया है
नयन दिखते आज नम से ।

लक्ष्य तक वे क्यों पहुंचते
जो चले आधे कदम से ।

बात समझो तब कहूं मैं
मुक्ति मिलना है करम से ।

विजय कल्याणी तिवारी
बिलासपुर छ.ग.

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