बैर भुलावत प्रीति बढ़ावत हिय कर पाप नसावत होली।।
सत्य कै जीत असत्यनु हार औ हरि कर जाप बतावत होली।।
पंथ कै कीचनु नास करावत पंथ सुपंथ रचावत होली।।
अभिमान पिता जेहि तोड़ दिया अस चंचल पूत रटावत होली।।1।।
होरी गयी जौ कोरी हमारी तौ रंग गुलाल उड़ाने न दूँगी।।
मंजीर को बाँध रखूँ मैं जंजीरनु ढोल पै थाप लगाने न दूँगी।।
माघ को रोंकि रखूँगी सेंवारन फागुन गाँवनु आने न दूँगी।।
फाग को चंचल भंग करूँ अरू भंग को घोंटि चढ़ाने न दूँगी।।2।।
आशुकवि रमेश कुमार द्विवेदी, चंचल, उलरा, चन्दौकी, अमेठी।।पिनकोड..227813।।
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