हुए रुसवा कभी वादे कसम इकरार होली में।
किसी की बेवफाई से है दिल बेज़ार होली में।।
दुआएँ, मन्नतें माँगी, झुकाये सर भी सज़दे में ।
हुआ मुश्किल से उनका तब, कहीं दीदार होली में।।
हुई बरसात रंगों की, लगी रंगीन ये दुनियाँ ।
बदन, गेसू, के सँग भीगे, कभी रुख़सार होली में।।
ढही दीवार बंदिश की, कटे ज़ंजीर कदमों के ।
हुई आँगन में पायल की, कभी झंकार होली में ।।
खिले टेसू उमंगों के ,तबस्सुम ने ली अँगड़ाई ।
मेरी गलियों से गुजरे जब कभी, सरकार होली में।।
न हो रंज़िश का अब मौसम, न नफरत की बयारें हों ।
बहे सद्भाव के गंगा की, पावन धार होली में ।।
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शिवशंकर तिवारी ।
छत्तीसगढ़ ।
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