सुप्रभात संग आज की पंक्तियाँ :-
मौत की अमानत
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छत्र छाजेड़ “ फक्कड़”
ज़िंदगी तो अमानत है मौत की
फिर क्यूँ और काहे का डर....
जहाँ जीवन है तहाँ इच्छा है
पर क्यों इच्छा हेतु ललचाना
सब दौड़ रहे इच्छा के पीछे
किसने जीवन को पहचाना
पल पल जीवन रीत रहा
अगले पल की है किसे ख़बर....
ज़िंदगी तो अमानत है मौत की
फिर क्यूँ और काहे का डर....
मन करता है उन्मुक्त हँसूँ पर
घिरा हूँ निज के अभिमान से
इंसान से तो पाखी अच्छे हैं
स्वच्छंद विचरते आसमान में
सब मंदिर मस्जिद में डोल रहे
कौन झाँकता है अपने अंदर.....
ज़िंदगी तो अमानत है मौत की
फिर क्यूँ और काहे का डर......
सूखी रेत कब टिकती मुठ्ठी में
जाने कब फिसल ही जाती है
क्यों मोहित करती ये ज़िंदगी
जो हर पल घटती जाती है
जग दौड़े मृग-तृष्णा के पीछे
कैसे मिलेगी मोक्ष की डगर.....
ज़िंदगी तो अमानत है मौत की
फिर क्यूँ और काहे का डर.....
जो आया है वो इक दिन जायेगा
यही ब्रह्म सत्य कहलाता है
मगर सत्य जानने वाला खुद ही
सदैव मौत से घबराता है
मन जाने कहाँ कहाँ फिरे डोलता
कैसे हो प्रवचन का असर....
ज़िंदगी तो अमानत है मौत की
फिर क्यूँ और काहे का डर.....
प्रबुद्ध पटल को नमन
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