चंचल नैना मद भरे, ता पर कारी रेख।
श्वेत श्याम रतनार दृग, पढ़ैं प्रेम के लेख।
*दोहा*
*चंचल*
केहरि कटि खंजन नयन, कच कारे कुच भार।
कनक छरी विधु आननी, चंचल बांकी नार।।
चंचल मन पिय संग गयो, सुधि आवत उर पेख।
रात सुरति दिन चैन कंह, उलट भाग के लेख।।
चंचल चितवन मन हरै, कौन सुनै मन पीर।
जब सैं लखी सुहावनी, तब सैं मनस अधीर।।
भई विलोमित गति सखी, हेरे चंचल नैन।
कोरी आंखिन भोर नित, प्रखर मौन भये बैन।।
प्रखर दीक्षित
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