*मधुमालती छंद*
*हे कर्ण*
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हे कर्ण शाश्वत वीर तुम।
हो धीरता में धीर तुम।।
तुम सत्य सार्थक सत्यता।
प्रतिपल निभाए मित्रता ।।
तुम दान तन मन धन दिए।
निज मान हित जीवन जिए।।
मन रोष धर यह प्रण लिए।
पांडव विरोधी रण किए ।।
कौरव निभाए साथ तुम ।
भूले स्वयं का हाथ तुम।।
माँ को दिए तुम जब वचन ।
बस पाँच पांडव कर चयन।।
कुंडल कवच शोभा वरद।
दे इंद्र को डाले विशद।।
अपमान जीवन भर सहे।
पीड़ा नहीं यह तुम कहे ।।
सारंग शर जब तुम धरे।
तब जीत पांडव की करे।।
तुम वीर योद्धा थे परम।
रवि ताप धर अतिशय चरम।।
बंधन निभाए मित्र से ।
पालक बने सह चित्र से।।
तुम वीरता का गान हो।
हे कर्ण मधु सम्मान हो ।।
मधु शंखधर स्वतंत्र
*प्रयागराज*
*15/03/2022*
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