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डा. नीलम

*प्रकृति*

मुस्कराने लगी प्रकृति
देखो पेड़ो पर बहार आई है
टेसू फूले,पलाश महके
भर दुपहरी आक खिल गए

लताएं फलफूल लिपट 
वृक्षों से रहीं ,ज्यों पहली बार
कोई कमसिन नई नवेली
माँ बन पिया से हो लिपटी

बाग-बगीचों में डालियों पर
फूल यों झूला झूल रहे
जैसे सावन में रंग-बिरंगे 
परिधान सजे सुंदर नार झुले

हवाओं के पग भी नशे में डूबे
कभी इस डाली ,कभी उस डाली
बेशर्मी से फूलों के मुख चूम
जर्रा-जर्रा महका रहे।

            डा.नीलम

*अज्ञातवास*

माँ-बाप की जिद के आगे
अधपकी उम्र में ही जबबेटियां जबरन बियाह दी जाती हैं
अनजाने अनदेखे परिवार में

बचपन की अल्हड़ कल्पनाएँ
वयसंधि के कोमल स्वप्न
अनजाने, अनचाहे,अनबोले ही/चले जाते हैं अज्ञातवास में

सास की चिड़चिड़ाहट,ननद की स्वार्थ प्रकति,देवर के लालच संग जब पति भी पियक्कड़ निकल आए तो

इक बंगला हो सुंदर सा
जिसमें खुशहाल परिवार होगा
चाँद-सितारे से नन्हें बच्चों की
मासूम कल्पना चली जाती है अज्ञातवास में।

         डा. नीलम

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