माता पिता का प्रेम
बड़े सकुचाते हुए विनम्र भाव से बोला
रूठ मत जाना मेरी यही फरियाद है
सच कहता हूं माता पिता ही मेरे
ब्रम्हा विष्णु और महेश हो।
जिसने भी त्यागा,माता पिता का प्रेम
दुनिया में सुख साधन की खोज में
वो भटकें दिन रात इधर उधर क्योंकि
माता पिता का प्रेम ही स्वर्ग का धाम है।
याद करें बीते हुए बचपन को
माता पिता ने क्या क्या नही किए
जब हम रोते थे तो, हमें मनाने के लिए
उनके भावों का विश्लेषण,बहुत मुश्किल है।
सूरज की गर्मी में,वर्षा की नरमी में
मौसम के रंगों में,रंगो के मौसम में
हम सब के आंखो की भाषा को
बचपन में मन की परिभाषा को
समझनें में देर न लगाते थे
वो ही तो,माता पिता का प्रेम था।
रूप तुम्हें सुंदर मिला,स्वर भी है कमाल का
कहां से प्राप्त हुआ है,कौन है निर्माता
जिसने भी जाना,माता पिता को
उसे कुदरत भी देती है,सुख की सौगात।
अपनी करनी की सजा मिलती है सबको
नजर अंदाज न कर, मां बाप को
सब वस्तु मिल जायेगा,इस जग में
पर खोने के बाद,कहां पाओगे मां बाप को।
चैन की राह दिखाने वाला
माता पिता का प्रेम ही होता है।
नूतन लाल साहू
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