अहो! ग़रीबी तेरे कारण, आज होलिका बिसर रही।रंग भरे दिवानों की, टोली यहां से गुजर रही।। - दयानन्द त्रिपाठी व्याकुल
अहो! ग़रीबी तेरे कारण, आज होलिका बिसर रही।
रंग भरे दिवानों की, टोली यहां से गुजर रही।।
सबने रंगी है गाल हथेली,
देखो खेल रहे हैं होली;
सबने मुझको बहलाई है,
मेरी रोटी की लड़ाई है.....
दु:ख के कितने किस्से सुनाऊं, आंख से आंसू निकल रही।
रंग भरे दिवानों की, टोली यहां से गुजर रही।।
प्रश्न खड़े हैं नित नये हमारे,
अंधकार में जीवन सारे;
रंग बदल रही राजनीति की,
रिक्त उदर की आरती की.....
मन मेरा पाषाण हो रहा, माई मेरी खाट पकड़ रही।
रंग भरे दिवानों की, टोली यहां से गुजर रही।।
मज़हबी झगड़ा फैलाने वाले,
दे रहे विवादित गुरुवाणी;
चले विकल हम धीरे-धीरे,
कुम्हला रहा प्रसून सुहानी....
सबके पीछे रहकर देखी, अब इंसानियत मर रही।
रंग भरे दिवानों की, टोली यहां से गुजर रही।।
नभ में उड़ने का मन करता,
दम्भ और अपमान मैं सहता;
सुन लो करुण कहानी में,
जैसे घुले बताशा पानी में....
व्याकुल थाली रंग हाथ में, बुझी सुबह और शाम हो रही।
रंग भरे दिवानों की, टोली यहां से गुजर रही।।
दयानन्द त्रिपाठी व्याकुल
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