स्त्रियां
ये स्त्रियां न जाने कैसी होती है
कोमल फूल जैसी
लेकिन लोहे से भी मजबूत होती हैं
शीतलता चांद सी
लेकिन सूर्य से भी गर्म होती हैं
स्त्रियां ना जाने कैसी होती हैं
शारीरिक मानसिक यातनाएं सहकर भी
संबंधों से सूखे पत्तों जैसी जुड़ी रहती हैं
हृदय में दर्द की टीस को दबाकर
हंसती मुस्कुराती और खिलखिलाती हैं
स्त्रियां ना जाने कैसी होती है
प्रेम की नदियां होकर भी
अतृप्त और प्यासी रहकर भी
जीवन पर्यंत ओस की
केवल दो बूंद का इंतजार करती हैं
स्त्रियां ना जाने कैसी होती है
मां बेटी बहन पत्नी के रूप में
स्नेह आशीर्वाद और प्रेम को लुटाती हैं
वंदनीय पूजनीय होती हैं
झुककर पुत्री जैसी नमन करती
वास्तव में भारत माँ सरीखी होती हैं
यह स्त्रियां न जाने कैसी होती है।
अर्चना सिंह
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