सुप्रभात संग आज की सोच:-
अस्तित्व बोध
***********
छत्र छाजेड़ “फक्कड़”
तपते
उष्ण
लौह पिंड पर
अनवरत
गिरती फुहारें
एक छन्नाक आवाज़ के साथ
खो देती है
अपना अस्तित्व .....
वैसे ही
क्रोध के
प्रबल आवेग में
दिया गया उपदेश
मार्ग दर्शन
एवं
सुझाव - संबोधि
कहाँ करा पाता है
बोध अपने अस्तित्व का
और
बूँद और बोधि
एक आवाज़ के साथ
खो देते हैं
अपना अपना अस्तित्व ......
पटल को नमन
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें