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एस के कपूर श्री हंस

*।।विषय/विधा।।गद्य( आलेख)।।*
*।।रचना शीर्षक।।*
*।।होलिका दहन।।केवल पर्व ही नहीं।।संबधों की प्रगाढ़ता सुदृढ़ करने का स्वर्णिम   सुअवसर।।*
मुख्यतया होली ,एवं दीवाली, दशहरा व अन्य  पर्व केवल रंगों ।गुलाल के खेलने व आतिशबाजी के त्यौहार ही नहीं है,अपितु दिलों का रंगना,मिलना इसमें  परमआवश्यक है।रंगों के बहने के साथ ही, मन का मैल बहना भी बहुत आवश्यक है ,तभी होली की सार्थकता है।और दीपावली पर जाकर मिलना ,उनके हाथ से मीठा खाना, साथ हंसना बोलना ही पर्व की सार्थकता है।कहा  गया है कि,अंहकार मनुष्य के पतन का मूल कारण है। अंहकार मनुष्य की बुद्धिविवेक , तर्कशक्ति , मिलनसारिता तथा अन्य गुणों का हरण कर लेता है।व्यक्ति का जितना वैचारिक पतन होता है  ,उतना ही उसका अंहकार बढता जाता है। अंहकार से देवता भी दानव बन जाता है और अंहकार रहित मनुष्य देवता समान हो जाता है।बड़ी से बड़ी गलती के तह में  यदि  जाये ,तो मूल स्रोत में अंहकार को ही पायेंगे।ईर्ष्या व घृणा का मूल कारण भी अंहकार ही होता है ,जो अन्ततः कई क्षेत्रों में  असफलता का कारण बनता है। होली,दीपावली व अन्य त्योहार वो अवसर है ,जब कि ,मनुष्य समस्त विद्वेष व कुभावना का त्याग कर  शत्रु को भी मित्र बना सकता है।अंहकारी सदैव विनम्रता विहिन होता है।अंहकार आने से  मनुष्य अपने वास्तविक रूप से भी  ,धीरे धीरे दूर हटने लगता है और एक बहुरूपीये समान बन जाता है।वह कई झूठे  आवरण अोढ लेता है और उसकी  अपनी  असलियत ही लुप्त होने लगती है।अंहकारी में , हम की भावना नहीं  होती है।उसमें  केवल  मैं की  भावना ही होती है।यह भावना नेतृत्व क्षमता व समाजिक लोकप्रियता के लिए अत्यंत घातक है।अंहकारी व्यक्ति में धीरेधीरे धैर्य,निष्ठा ,सदभावना का अभाव होने लगता है।अंहकार का खानदान बहुत बड़ा है और यह अकेले नहीं आता है और  साथ में कोध्र, स्वार्थ,घृणा,अहम,अलोकप्रियता,  अधीरता ,आलोचना,निरादर कर्मविहीन सफलता की लालसा ,अतिआत्म विश्वास, त्रुटि को स्वीकार न करना, आदि अनेक अवगुण स्वतः ही साथ आ जाते हैं।अतएव ,त्योहारों में ( मुख्यतया होली में)बड़ापन दिखायें,एक कदम आगे बढे, दिल से गले लगायें।आप पायेंगे नफरत की बहुत मजबूत सी दिखने वाली दिवार, भरभरा कर एक झटके में ढह जायेगी।
सारांश यही है कि, होलिका दहन मे अहंकार को भी जला कर नाश कर दिया जाना चाहिए।जन्माष्टमी का प्रसाद का आदान प्रदान करें।दीपावली में एक दूसरे के यहाँ अवश्य जाये।मिलकर दशहरा पर्व पर रावण दहन करें।तभी  इन  सभी पवित्र पावन पर्व की सार्थकता है।पहल करके देखिये, एक कदम बढ़ाइये, आप पाएंगे कि पहले ही दो कदम आपकी प्रतीक्षा कर रहे हैं।गले भी लगिये और दिलों को भी मिलाइये।आप देखेंगे कि त्योहारों की यह मिलनसारिता, एक सकारात्मक परिणाम आपके जीवन में लेकर आयेगीऔर जीवन की दशा व दिशा में नव परिवर्तन करेगी।
*लेखक।।एस के कपूर"श्री हंस"*
*साहित्यकार व समाजसेवी*
*बरेली।।*
9897071046
8218685464
*(मेरा यह लेख कई पत्र/ पत्रिकाओं व आई नेक्स्ट में प्रकाशित भी हो चुका है)*

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