,,,,,,,,,किनारे चूम लेंगे हम ,,,,,,,,,,,,
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न रंजो ग़म का मंज़र हो, न अश्कों की रवानी हो. ।
सुकूँ दिल में, तबस्सुम होंठ पर, चेहरा नूरानी हो ।।
दुआ माँगूँ यही तुमसे , मेरे दाता , मेरे मौला ।
न भूखा हो यहाँ बचपन, न अब प्यासी जवानी हो।।
बहे सद्भाव की दरिया, ढहे दीवार नफरत की ।
ग़ज़ल, गीतों,रुबाई में, मोहब्बत की कहानी हो
न झुलसे मज़हबी शोलों से, ये गुलशन गुलाबों के ।
हसीं वादी में केसर की ,वही पुरवा सुहानी हो ।।
रखें महफूज़ गर्दिश के कहर से मुल्क की अस्मत ।
फना हो जायें हम, लेकिन तिरंगे की निशानी हो ।।
भँवर सैलाब तूफाँ आँधियों का जोर है फिर भी ।
किनारे चूम लेंगे हम ,भले कश्ती पुरानी हो ।।
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शिवशंकर तिवारी ।
छत्तीसगढ़ ।
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