कान्हा होली खेलते, गोपी ग्वालों संग।
श्री राधे की प्रीत में, नव पुलकन के रंग।।
गली-गली हुल्लड़ मची, नाचें ग्वाले संग।
पर्व नंद दरबार में, हरपल नई उमंग।।
घोल प्रेम को भांग में, सभी हुए निष्काम।
हरि गुण गाए हर्ष से, चरण परम पद धाम।।
पिचकारी केसर भरी, भीगे सारे संग।
ग्वाल बाल सब मस्त है, सारे खेलें रंग।।
रंगों के त्योहार में, देखों उड़े गुलाल।
बुरे भाव सब भस्म हो, कान्हा संग धमाल ।।
मेधा जोशी।
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