श्री सरस्वती अर्चनामृतम
(स्वर्णमुखी)
भारतवर्ष परम प्रिय पावन।
जहाँ सरस्वति माँ रहती हैं।
सबका मन निर्मल करती हैं।
हंसवाहिनी परम लुभावन।
दिव्य मनोहर पुस्तक बन कर।
माँ सरस्वती चलती रहतीं।
शुद्ध वायुमण्डल को करतीं।
वीणा ले कर गातीं घर-घर।
नीरक्षीर की ज्ञान-प्रदाता।
पारदर्शिता का संचालन।
प्रिय मानवता का अनुशासन।
मात शारदा भाव-विधाता।
अंतःकरण शुद्ध करतीं माँ।
हम सब गायें माँ की महिमा।।
रचनाकार:डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी
9838453801
नारी सम्मान
–स्वर्णमुखी छंद–
नारी ही सच्ची मानवता।
इस प्रतिमा को मत विकृत कर।
इसकी गरिमा को स्वीकृत कर।
नारी नैसर्गिक नैतिकता।
नारी पावन उच्च प्रकृति है।
लेती नहीं सदा देती है।
लालन-पालन की खेती है।
नारी स्वयं सृष्टि संस्कृति है।
नारी के हैं रूप अनेका।
अतिशय मृदुल भव्य शिव गीता।
विश्वमोहिनी प्रेम पुनीता।
माया-जीव-ब्रह्म अति नेका।
नारी का सम्मान जहाँ है।
प्रिय लक्ष्मी का वास वहाँ है।।
रचनाकार:डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी
9838453801
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें