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विजय कल्याणी तिवारी

// तेरा पुण्य प्रसाद //
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जो कुछ गढ़ पाया सखा  तेरा पुण्य प्रसाद।
जब से शरण सहज गया उतरा सकल प्रमाद।

नयनन में छवि धारकर उतर गया भव धार
डूबूं या हो जाउं मैं  सहज रूप जग पार
केवल तुम अंतर हृदय तनिक नही अवसाद
जो कुछ गढ़ पाया सखा  तेरा पुण्य प्रसाद ।

उस पर कर विश्वास तो सब शंका निर्मूल
तन मन में वह ही रहे अंतिम यही उसूल
गहन आस्था से बढ़े प्रभु चरणों अनुराग
जो कुछ गढ़ पाया सखा  तेरा पुण्य प्रसाद ।

रीत सनातन पर जिन्हें अंतस तक अनुबंध
उसके जीवन का सरल होने लगा प्रबंध
जो कुछ मुंह में जा रहा उसका अनुपम स्वाद
जो कुछ गढ़ पाया सखा  तेरा पुण्य प्रसाद ।

देख कभी मत तोड़ना बांधा हरि से डोर
भगति भाव में राखना निज मन सदा विभोर
इस जग मे उनसे बड़ा  नहि कोइ जायदाद
जो कुछ गढ़ पाया सखा। तेरा पुण्य प्रसाद ।

विजय कल्याणी तिवारी, बिलासपुर छ.ग.

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