मृदु भाव
(स्वर्णमुखी)
मृदु भाषा में अपनापन है।
मृदु भाषा में अति सम्मोहन।
अति सशक्त यह संकटमोचन।
मीठी बोली में शुभ घन है।
मृदु भावों में उत्तम जग है।
परम शांति का स्थापन होता।
विकृति का विस्थापन होता।
मृदुल भाव सर्वोत्तम नग है।
मृदु भावों में प्रेम समंदर।
एकत्रित होती सब जगती।
समरस बनती सारी धरती।
मिट जाता अज्ञान -असुंदर।
मृदुल भाव का वृक्ष उगाओ।
दुनिया को मिष्ठान्न खिलाओ।।
रचनाकार:डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी
9838453801
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