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विजय कल्याणी तिवारी

// अंतर हिय आनंद //
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अंतर हिय आनंद का नही मीत कुछ मोल।
शेष गांठ नही राखना बहुत जतन से खोल।।

रंगों के त्यौहार से  क्या सीखा है बोल ।
व्यर्थ नापता है फिरे  दुनिया का भूगोल।।

बाहर भीतर एक सा नही रख सका यार।
बोल तुझे क्यों कर करे  कुछ दुलार संसार।।

बाहर भीतर एक सा  रखता वही सुजान।
सहज वृत्ति से ही मिले  इस जग में सम्मान।।

होली के आनंद का  मन से रख संबंध।
प्रिय मनुष्य सद् कर्म से  बिखरे सुरभित गंध।।

इन रंगों संग हो उदय  पूरब नया प्रभात।
अबकी इस त्योहार हो  खुशियों की बरसात।।

विजय कल्याणी तिवारी, बिलासपुर छ.ग.

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