होलिका दहन किया, परसों होली खेलो।
भक्त प्रहलाद की सब जय जय जय बोलो।।
हिरण्यकस्यप अचंभित, लाचार बेचारा।
धर्म भी कहीं अधर्म से युगों में कभी हारा।।
दानव दंभी को नरसिंह ने अंतत: तारा,
माना हमने यह एक पौराणिक कथा है।
हर पल यह बध अन्दर बाहर चलता है।
मन का राम, पापी रावण का वध करता है।।
रावण अष्टपाश-सट् ऋपुओ पर हुआ हावी।
पाप-पुण्य का खेल सबकी आती है बारी।।
महापातकी के पाप को मरना हीं होता है।
धर्मनिष्ठ का बाल नहीं बाँका कभी होता है।।
पँच तत्वों में सतरंगी गुण धुला रहता है।
उपर से हीं नहीं कुछ दिख सकता है।।
रंगोली-अल्पना, होली में रंगों से पुतना।
प्रकृति की ताल से है ताल मिलाना।।
पिया के घर जा, रंग में पूरा रंग है जाना।
उत्तम सात्विक आहार जम कर है खाना।।
दुस्मन को दोस्त बना गले लगाना।
हर पल होली के रंगों में रंग जाना।।
भक्ती भाव में मिल-जुल कर बह जाना।
ध्रिणा-द्वेश-क्रोध की अगन से मुक्त हो जाना।।
धर्म ध्वजा चहुदिशी है हमको फहराना।
सात रंग हैं प्रभु के, उनके रंग में रंग जाना।।
डॉ. कवि कुमार निर्मल___✍️
@DrKavi Kumar Nirmal
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