मन के मैल जलावऽ
भुला गेल हम्मर सभ्यता संस्कृति
ढूंढ के ओकरा अब कोय लावऽ
कब तक छूछे गाल बजइ वऽ
कुछ करतब अप्पन देखलावऽ
हो सके तो अबकी होली में
पगड़ी धोती कुर्ता सिलबावऽ
फटल जींस के छोड़ऽ पहिराना
लइकन के नुंगा नया सिलावऽ
मेहरारू के सूती साड़ी पियरिया
पांव पइजनियां बिछिया पहिरावऽ
कान में झुमका नाक नथुनियाँ
माथे टीका चूड़ी कंगना खनकावऽ
चहुओर चौपदा दोपदा गूंजे
पुरानका होली फेर सुनावऽ
पसरे आनंद फेर मंगल बाजे
घर-आंगना में मधुर गीत गावऽ
आजाद अकेला मगन मन घूमे
खूब रंग गुलाल सब मिल उड़ावऽ
अबकी अप्पन दिल के दूरी दूर करऽ
होलिका में सब मन के मैल जलावऽ
✍️आचार्य गोपाल जी उर्फ आजाद अकेला (बरबीघा वाले)
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