// सच्चा धन //
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गंगा जैसा निर्मल मन
एक यही है, सच्चा धन।
सोच समझ कर पग धरना
दाग नही धुलता जीवन।
बहुत दूर हैं दोनों फिर भी
हाथ न छोड़े धरा गगन ।
सच्चे सुख की जो तलाश है
बांध जरा अंतस बंधन ।
उनको इनको टोका टाकी
देखो खुद का चाल चलन ।
जो विष भरा हृदय के अंदर
होगा फिर कम कहाँ जलन।
यह जीवन है भेंट उसी की
कर दे यह उनको अर्पन ।
जो अभाव का जीवन जीते
रख उन पर संवेदना गहन ।
आर्तनाद है कुछ कंठों का
मूढ़ , नही सुनता क्रंदन ।
इस माटी मे उपजा बाढ़ा
भूल नही इसका वंदन ।
विजय कल्याणी तिवारी
बिलासपुर छ.ग.
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