गीत(16/14)कर्तव्य
जीवन की राहों में पग-पग,
आगे बढ़ते जाना है।
लड़कर ही तो तूफ़ानों से,
सदा लक्ष्य को पाना है।।
रुकता जो पथ-बाधा पाकर,
रूठ लक्ष्य उसका जाता।
मंज़िल तक वह पहुँचे भी तो,
फल सूखा केवल पाता।
क़दम समय से मिला चले जो,
मधु फल उसको खाना है।।
सदा लक्ष्य को पाना है।।
हो प्रचंड सूरज की गर्मी,
या भीषण बरसे पानी।
शीत लहर का हो प्रकोप या,
मौसम करता मनमानी।
दिखता केवल लक्ष्य जिसे ही,
मिलता उसे ख़ज़ाना है।।
सदा लक्ष्य को पाना है।।
।
सागर की तूफ़ानी लहरें,
सदा मीत बन जाती हैं।
ऊँची-ऊँची पर्वत-शिखरें,
अवनत माथ झुकाती हैं।
ऐसा अवसर उसे ही मिलता,
लक्ष्य सुदृढ जो ठाना है।।
सदा लक्ष्य को पाना है।।
भौतिक बाधा भले आज हैं,
कल विनाश उनका निश्चित।
कितना मीठा फल वह होता,
श्रम-बूँदों से जो सिंचित।
सच्चे साधक को इस जग ने,
पूजनीय ही माना है।।
सदा लक्ष्य को पाना है।।
©डॉ0हरि नाथ मिश्र।
9919446372
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