दोहे
लेकर सोच नवीन जो,पलता यहाँ समाज।
नई चेतना साथ ले,करे विश्व पे राज।।
मात्र शुद्ध परिवेश ही, होता रोग-निदान।
सोच न कलुषित हो कभी,रखें सभी जन ध्यान।।
देख गंदगी सोच की, होता मन में क्षोभ।
सच्चा मानव है वही, जिसमें रहे न लोभ।।
प्रियतम हैं परदेश में, गोरी - चित्त उदास।
टूट गई उसकी अभी,मधुर मिलन की आस।।
सफल-सुखद-स्वर्णिम रहे,केवल वही अतीत।
वर्तमान यदि शान से, जाता है जो बीत।।
लोभ-मोह को त्याग कर,रख काबू में क्रोध।
प्रगति-द्वार निश्चित खुले,बिना किसी अवरोध।।
धीरज कभी न छोड़ना, धीरज सच्चा मीत।
जीवन को बस दे यही, मधुर गीत-संगीत।।
© डॉ0 हरि नाथ मिश्र
9919446372
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें