प्यार निभाना नहीं सरल है
(स्वर्णमुखी)
नहीं जानते प्यार निभाना।
फिर क्यों इसे रटा करते हैं?
बहक-बहक बोला करते हैं।
नहीं जानते इसे सजाना।
प्यार पालना नहीं सरल है।
आती रहती हैं वाधाएँ।
इस सुगंध में भी विपदाएँ।
यह अमृत भी और गरल है।
है बहार मधु सुखद सरोवर।
इसे देख जग सह नहिं पाता।
अपना केवल रोष जताता।
प्यार नीर अरु जलज मनोहर।
जिसे प्यार करने आता है।
वह दैवी सुख नित पाता है।।
रचनाकार: डॉ० रामबली मिश्र हरिहरपुरी
9838453801
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