*खुदको ढूढ़ना पड़ेगा*
विधा : कविता
पढ़ लिखकर तुम अब
हो गये हो डिग्रीधारी।
पर कर नहीं रहे हो
अब भी कोई कामधाम।
जबकि तुम्हें पता है
की सरकार युवाओं को।
रोजगार आदि के लिये
कुछ भी नहीं कर रही है।।
क्यों आस लगा रखी है
तुमने नौकरी की सरकार से।
ये तो तेरी मेहनत का फल है
की तू पढ़ा-लिखा इंसान बन गया।
जबकि ये तो चाहती नहीं है
हमारे देश की सरकारे।
इसलिए देश के युवाओं को
दूसरी राह दिखा रहे है।।
स्वयं तुझे अब हल खोजना पड़ेगा
और गाँवों की बंजर पड़ी भूमि को।
आबाद इसे अपनी मेहनत लगन से
तुझे अपना लक्ष्य बनाना पड़ेगा।
और स्वयं के रोजगार का बीज
हल चलाकर बौना पड़ेगा।
और खुशाली की हरी फसल
चारों दिशाओं में लहराना पड़ेगा।।
जरा धैर्य से तू सोच की
किस भारत में जन्म लिया है।
जहाँ के कण कण में
सच में भगवान बसते है।
ऐसी पवित्र भूमि पर तुझे
हल चालने को मिल रहा।
और मानो तुम्हें इस पर
बहुत गर्व हो रहा होगा।।
स्वयं बनो देश के युवाओं
शासक और प्रशासक तुम।
मत देखो औरो की तरफ
दया की आस लगाकर।
खुद बनो तुम एक योध्दा
अपनी मेहनत के बल से।
और खुशाली गाँवों से लेकर
शहरो तक में लाकर दिखा दो।।
जय जिनेंद्र
संजय जैन "बीना" मुंबई
07/04/2022
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