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आशुकवि रमेश कुमार द्विवेदी चंचल


समय.....
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पुरानी चिरानी के भाव लदेअबु पल्लव रोज़ नवीन जु आयो।।
वस्त्र जो गरम गये अबु कोननु दिनमणि रोब जमाने जु आयो।।
हरियाली उठी अबु फसलिनु केरि रंग पिअराई सुहानो जु आयो।।
चंचल बाल कुँवार कबो कोई श्वेतनु केशु रँगाने जु आयो।।1।।
थोडी़ मा थोरी सी शीतु बची अरू चित्तनु चैत समाने लग्यो है।।
पाती गिरी बिच डारनु तै अब रूचिकर पल्लव आने लग्यो है।।
शीतल मंद बयारि बहै अबु नीम मा फूलन आने लग्यो है।।
चंचल माई के दिन नवरातर आने को ठाढ़े सुहाने लग्यो है।।2।।
साफ सफाई चली सबु मन्दिर लागै दिनानु हैं माई के आयो।।
वोट जे खोट वो मारि के चोट अबु सरकारू संदेशनु आयो।।
पंडनु रोलीऔ चावल साथेनु याद पितरपख लाने जु आयो।।
भाखत चंचल रे सखियानु लगै नवरातर माई जु आयो।।3।।
आशुकवि रमेश कुमार द्विवेदी, चंचल, सुलतानपुर, यू.पी.।।, सुलतानपुर, यू.पी.।।

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