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मार्कण्डेय त्रिपाठी

राखो मेरी लाज

प्रभुजी राखो मेरी लाज ।
बीच भंवर में फंसी है नैया ,
बुद्धि भ्रमित है आज ।। प्रभुजी

कब से तेरे द्वार खड़ा हूं ,
तव दर्शन के हेतु अड़ा हूं ।
अब तो कृपा करो हे प्रभुवर,
पूर्ण करो मम् काज ।। प्रभुजी

बहुत कठिन यह माया बंधन ,
आहत मन करता है क्रंदन ।
तुम तो सब कुछ जान रहे हो,
गिरी समय की गाज ।। प्रभुजी

कोई नहीं पूछता है अब ,
बंद आंख से देख रहे सब ।
तुम तो समदर्शी कहलाते ,
हे जग के सरताज ।। प्रभुजी

तुमने अगणित पतित उबारे ,
भक्त खड़ा है तेरे द्वारे ।
मेरे दुख भी दूर करो प्रभु ,
डूब न जाए जहाज़ ।। प्रभुजी

पूजा पाठ मुझे ना भावे ,
मंत्र जाप ना मुझे सुहावे ।
व्यथित हृदय आकुल है मेरा,
जान रहे सब राज़ ।। प्रभुजी

तुम ही हो बस मात्र सहारा ,
दीनबंधु ,जग पालनहारा ।
भटक रहा है भक्त तुम्हारा ,
देता तुम्हें आवाज ।। प्रभुजी

मार्कण्डेय त्रिपाठी

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