शक्ति तुम्हें शत् शत् प्रणाम् है,
शक्ति तुम्हें शत् शत् प्रणाम् है,
शक्ति तुम्हें शत् शत् प्रणाम् है,
आदि तुम्हीं से अंत तुम्हीं से,
तुमसे शून्य अनन्त तुम्हीं से,
उद्भव का आधार तुम्हीं से,
सकल सृष्टि संसार तुम्हीं से,
तुमसे ही दिन रात जगत में,
और तुम्हीं से सुबह शाम है,
शक्ति तुम्हें शत् शत् प्रणाम् है,
शक्ति तुम्हें शत् शत् प्रणाम् है ।।
विजय प्रताप शाही
गोरखपुर, उत्तर प्रदेश
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें