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श्रीकांत त्रिवेदी प्राञ्जल

💐 "नव संवत्सर"💐
मन में छाया है हर्ष अहा !
आया अपना नव वर्ष अहा !!

 मौसम ने भी अंगड़ाई ली
 पेड़ों ने भी तरुणाई  ली,
 कलियां भी आज जवान हुई,
 कोयल की कूक सुनाई दी,
        मन में तन में है हर्ष अहा ! 
        आया अपना नव वर्ष अहा !!

तालों में खिलते कमल अहा,
खेतों में पकती फसल अहा,
बागों  में  आम  भी  बौराये ,
सब कुछ है अपना असल अहा !
         अब है अपना उत्कर्ष अहा !
         आया अपना नव वर्ष अहा !!

ना धरा ठिठुरती सर्दी से,
ना देह सिहरती सर्दी से ,
कुहरा भी छाया नहीं घना,
फसलें ना मरती सर्दी से!
        अब ऋतु का है उत्कर्ष अहा!
         आया अपना नव वर्ष अहा !!

इस ऋतु का रंग बदलता हैं,
कलियों का ढंग बदलया हैं ,
हम सब नव वर्ष  मनाएंगे ,
संवत्सर जरा बदलने दो!
     धरती पर छाया हर्ष अहा !
     आया अपना नव वर्ष अहा !!
    
श्रीकांत त्रिवेदी, "प्राञ्जल"
लखनऊ

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