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विजय कल्याणी तिवारी

//  माँ -- 7  //
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मात तुम्हारे चरण में  कटे शेष दिन रैन।
तत्क्षण जीवन से विदा  दरस न पाए नैन।।

उस जीवन का अर्थ क्या  जो तुझसे है हीन।
सब कुछ पाकर वह मनुज  जग जीवन हो दीन।।

माँ करुंणा के अंश से  भर झोली संसार।
धीरे - धीरे धर्म का  होने लगे प्रसार।।

घटे ताप संताप जग  निखरे पुण्य प्रकाश।
तेरी सत्ता हो अटल  भाव रहे मन दास।।

प्रेम प्रीत के वृक्ष में  खिले सुवासित फूल।
नेह स्नेह बढ़ता रहे  जीवन के अनुकूल।।

विजय कल्याणी तिवारी, बिलासपुर छ.ग.
// माँ -- 6 //
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दुख दारिद जग बढ़ रहा विघटन में है प्रीत 
ऐसे में मन मोहते माता तेरे गीत ।।

अंतस के मृत भाव को सहज जगाती मात
निज भक्तों पर नित करें नेह मयी बरसात।।

तेरे चौखट से कोइ गया न खाली हाथ
हाथ पकड़ कर ले गई सबको अपने साथ।।

विपदा में हम सब पड़े माता विपति निवार
सहज सुखों का भान हो बदल मनुज व्यवहार।।

गुंजित गीत हृदय रहे और चरण में ध्यान
जनम जनम सेवक रहूँ इसका हो अभिमान।।

विजय कल्याणी तिवारी, बिलासपुर छ.ग.

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