मैया एक सहारा तुम
जीवन की इस मरुभूमि में,
शीतल जल की धारा तुम।
डोल रही मानव की नैया,
मैया एक सहारा तुम।।
अहंकार के वशीभूत हो,
भटक गया पथ राही ही,
अन्धकार से घिरा चतुर्दिक,
दीपों का हमराही ही।
माया के प्रवाह में डूबा,
मैया एक किनारा तुम।
जीवन की इस मरुभूमि में,
शीतल जल की धारा तुम।
स्वारथ की चादर में लिपटे,
अपने और पराए सब,
तृष्णा के फंदे में उलझे,
नेत्रहीन बौराये सब।
मावस की काली रातों में,
चमचम एक सितारा तुम।
जीवन की इस मरुभूमि में,
शीतल जल की धारा तुम।
प्रगति शिखर से लौटा मानव,
उसी डाल को काट रहा,
साँसें जिससे लेकर जीता,
विष उसको ही बाँट रहा।
कपटी इस कर्कष नगरी में,
नेहिल गीत हमारा तुम।
जीवन की इस मरुभूमि में,
शीतल जल की धारा तुम।
सीमा मिश्रा, बिन्दकी, फतेहपुर
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