क्या हुआ बस एक रोड़ा ही तो है,
उसका मुंह बस थोड़ा टेढ़ा ही तो है।
चलें जाया करें पहनकर बाजार में,
अचकन में एक पैबंद जोड़ा ही तो है।
सुना था वो मासूम है थोड़ा दिल का,
मिले तो जाना वो थोड़ा एड़ा ही तो है।
राज महल ही बस मेरा मिट्टी का घर,
शहर नहीं है, बस गांव खेड़ा ही तो है।
कौन कहता है वो थाली भर खाते हैं,
नाप लो कमर, मोटा थोड़ा ही तो है।
जाने जमाना क्यों पागल कहता है,
गर्मी है थोड़ी, ओढ़ा दुशाला ही तो है।
नहीं सो पाओगे तुम आज की रात,
बिस्तर में पत्थर का टुकड़ा ही तो है।
अजय "आवारा"
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