वंदे मातरम
(स्वर्णमुखी)
माता रानी बहुत दुलारी।
सबसे प्यार किया करती हैं।
प्रेमिल हार दिया करती हैं।
श्री माता जी सहज पियारी।
नौ रूपों में तेज चमक है।
सर्वोपरि माँ असुर नाशिनी।
विंध्याचल की विंध्यवासिनी।
परम रूपसी भाव गमक है।
तुम्हीं शारदा मैहरवाली।
हंसवाहिनी ज्ञानविधाता।
प्रेमदायिनी जग व्याख्याता।
तुम्हीं समर में खप्परवाली।
शेष महेश गणेश तुम्हीं हो।
ब्रह्मचारिणी वेश तुम्हीं हो।।
रचनाकार: डॉ० रामबली मिश्र हरिहरपुरी
8838453801
स्वर्णमुखी
सदा काम का अभिनंदन हो।
जीवब को ही काम समझना।
सदा काम में ही रत रहना।
काम-लक्ष्य का नित वंदन हो।
कर्म प्रधान कर्म ही पूजा।
कर्म बिना मानव अति हीना।
कर्म-नीर में मानव मीना।
कर्मनिष्ठ बन चल त्यज दूजा।
कर्म तपस्या नित करता जा।
तपो-तपाओ खुद को प्यारे।
तन-मन दान किया कर न्यारे।
कर्म पंथ पर नित चलता जा।
कर्मनिष्ठ ही भाग्यवान है।
कर्महीन नर दुखी जान है।।
रचबाकर:डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी
9838453801
स्वर्णमुखी
माता जी के द्वार चलेंगे।
गौरी माँ का वंदन होगा।
बार-बार अभिनन्दन होगा।
गौरी माँ से प्यार करेंगे।
सभी भक्त उपवास करेंगे।
कीर्तन भजन मनन चिंतन हो।
अति प्रसन्न सारा तन-मन हो।
दिल से माँ के पास रहेंगे।
शुभ की सूचक माँ गौरी प्रिय।
गौरी माँ के प्रिय गणेश हैं।
विघ्नविनाशक बुधि विशेष हैं।
माँ -गौरीसुत रहते जग-हिय।
गौरि-गणेश रात्रि -नौ अष्टम।
देते यश-वैभव अत्युत्तम।।
रचनाकार डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी
9838453801
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