*माँ तेरे रूप अनेक*
विधा : कविता
मन मंदिर में आन विराजो
मेंहर वाली मातारानी।
दर्शन की अभिलाषा लेकर
आ गये हम मेंहर में।
तुमको अपने दर्शन देने
बुला लो हमें मंदिर में।
हम तो तेरे बच्चे है
काहे घूमा रही हो दुनिया में।।
कितने वर्षो से मातारानी
तुम सपने में देख रही हो।
अपनी मन मोहक छवि की
आकृति हमें दिखा रही हो।
पर साक्षात दर्शन को
चैत्र नवरात्रि में हमें बुलाएं हो।
और भक्तो को दर्शन देकर
हमें धन्य बनाये हो।।
पग पग पर साथ दिया
हे मातारानी तुमने।
जब जब फूली साँसे मेरी
ऊँचे पहाड़ पर चढ़ने में।
तब तब साथ आई गई
माँ मेरी तुम बनकर।
पल भरकर में बदल गई
दर्शन पा कर किस्मत मेरी।।
धन्य हुआ मैं आज सही में
माँ तेरे रूपों को देखकर।
नौ दिनों में क्या कुछ तुमने
दिखा दिया इस दुनिया को।
अपने हर स्वरूप का भी
तुमने विवरण दिया सबको।
और अत्याचारी पापीयों का
किया विनाश हे माँ तुमने।।
आप सभी को चैत्र नवरात्रि की बहुत बहुत बधाई और शुभ कामनाएं।
जय जिनेंद्र
संजय जैन "बीना" मुंबई
04/04/2022
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